चुप हू, बोलती नहीं अब ज्यादा
बस मुस्करा देती हू हल्के से,
नज़रे भी खामोश हो गयी है मेरी तरह,,
शायद इन्होंने भी चुपी साध ली है अब .....
पता है,,,
इंतज़ार कभी कभी बहुत भारी लगता है
वो रेत की तरह फिसलता नहीं, चिपक जाता है, गुड़ की तरह हाथों मे और तब ये तपती धूप के बाद की शाम,और ये हल्की
हल्की बारिश भी सुकून नहीं देती,,जब की हल्की बारिश तो बहुत पसंद है मुझे,उसकी बूँदों की टपकन से निकलने वाला संगीत,पत्तों की सरसराहट, मिट्टी की खुशबू और मेरे भीगे मन
को और भीगाती तुम्हारी यादें!! बूँदों से नदी का मिलन जैसे मेरे देह से आती तुम्हारी खुशबू ।।
फिर भी न जाने क्यों ये होता है जिंदगी के साथ
अचानक ये मन करे उसी को याद,
उसकी छोटी छोटी हर बात
किसी की याद!!
ना जाने क्यों होता है ऐसा
किसी के जाने के बाद।।
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