एक बार मेरी तरह....
कभी अकेले ज़ी कर तो देख़....
दर्द के रहते हुए ,
झुठी हंसी, हंस के तो देख़..
मन की अव्यक्त भावनाओं को ,
शब्दों में पिरोना सीख़. ..
किसी से प्यार की उम्मीद करने से पहले ,
उसे प्यार देकर तो देख़.....
किसी को अपना बनाना से पहले ,
उसका हो ज़ाना तो सीख़ ....
किसी की ज़ीने की वज़ह बन ज़ा ,
उसका दर्द समेटना तो सीख़ .....
एक बार मेरी तरह अकेले ज़ी कर तो देख़....
उज़ाले क्या होते हैं,
अंधेंरों में रहने वालों से पुछ कर तो देख्र...!!
एक टिप्पणी भेजें