घिरा रहता हूँ मैं भी आजकल अनगिन विचारों में
कि जैसे इक अकेला आसमाँ लाखों सितारों मे
हम अब लफ़्ज़ों से बाहर हैं हमें मत ढूंढिये साहब
हमारी बात होती है खमोशी से इशारों में
चमन में तितलियाँ हों या कि भँवरे रहना पड़ता है
कभी फूलों कभी तीखे नुकीले तेज़ खारों में
मुहब्बत की दुल्हन डोली में बैठी ही थी सज-धज कर
कि फिर होने लगी साज़िश उधर बैठे कहारों में
कुछ ऐसे खेल भी हैं बीच में ही छूट जाते हैं
मैं ऐसा ही खिलाड़ी हूँ न जीतों में न हारों में
@preetsinghsr
#preetsinghsr
#preet19385
#ps19385
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