इश्क़ में भीगी, ये आंखें.. (preetsinghsr)

आँखे
ये मध्दम शाम ओढ़े
सुरमई सी
बरसात की 
फुहारों सी नन्हीं
बूँद लिए

भिगो जाती हैं 
मन ऐसे,
जैसे तपती धूप में
जलती 
मिट्टी की सतह को,
छू जाती हैं
बारिशें..

सब नया नया
उजला सा
सौंधी महक में 
रोम रोम 
मुस्कुराता.

कुछ ऐसी ही हैं
अपना पन
समेटे
ये आंखे..

आंखें, मीठी सी..

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