प्यार एक एहसास है (preetsinghsr)

प्यार को शायद कोई परिभाषित नही कर सकता क्योंकि इसे शब्दो मे ढालना मुमकिन ही नही है । प्यार एक एहसास है और एहसास को बस महसूस किया जा सकता है उसे लिखा नही जा सकता ।  प्यार को समझने और जानने में कई बार पूरी उम्र निकल जाती है और अंत समय तक हम नही जानते कि प्यार होता क्या है । प्यार जिसमे खोने को कुछ नही और पाने को सब कुछ है । प्यार बिना शर्त के निस्वार्थ होता है । जरूरी नही के प्यार के बदले प्यार ही मिले क्योंकि किसी चीज के बदले कुछ पाने की आशा करना तो व्यपार हो सकता है पर प्यार नही । 
प्यार को समझने की कोशिश ना करें क्योंकि इसे जितना समझने की कोशिश करोगे उतना ही उलझ जाओगे इसमें ।  हो सके तो इसमें डूब जाओ जैसे किसी नदी में डुबकी लगाते हो ठीक वैसे ही . प्यार आपको पवित्र कर देगा । यकीन मानिए अगर आप प्यार में है तो आपकी सोच को एक अलग ही दिशा मिलेगी । प्यार आपको परिपक्व बना देता है । सही गलत क्या है ये आप आसानी से समझ सकते हो ।

आज कुछ लोगो ने इस शब्द के मायने ही बदल दिए है ।  अपनी शारीरिक जरूरतों को उन्होंने प्यार का नाम दे दिया है जबकि प्यार मैं इसकी कोई जगह ही नही । प्यार ना जात देखता है ना मजहब । प्यार का अपना ही धर्म है और अपने ही कायदे कानून । इसका मतलब ये नही की प्यार करना गलत है । गलत और सही की परिभाषा में तो प्यार को रखा ही नही जा सकता ।

प्यार के अलग अलग रंग है और रूप भी , किसी के लिए प्यार रोशनी से भरा है तो किसी के लिए इसमें बस अंधेरा ही है । किसी को इसमें इंद्रधनुषी रंग दिखते है तो किसी के लिए ये बस श्वत है । माँ और पिता का प्यार निश्छल होता है , भाई का प्यार कर्तव्य से भरा और बहन का प्यार दोस्ती से बढ़ कर । सबसे ज्यादा प्यार को परिभाषित करता है पति पत्नी का प्यार क्योंकि इसमें कर्तव्य है ,निष्ठा है , ये निश्छल है और सबसे जरूरी ये जन्म जन्मांतर तक बना रहता है । 
अच्छा होगा प्यार के मर्म को समझे क्योंकि इसमें ना ही फायदा है ना नुकसान । प्यार या तो होता है या नही होता । 
प्यार है कोयल की कुक सा , प्यार है मोरनी के निश्चय सा , प्यार है चातक के इंतजार सा । प्यार है हनुमान की 
भक्ति सा तो कहीं प्यार है राधा की शक्ति सा । किन किन और कितने रूपो में प्यार को परिभाषित करोगे । शब्द कम पढ़ जाएंगे पर फिर भी प्यार को लिख नही पाओगे ।  प्यार के आगे अच्छे से अच्छा इंसान बेबस हो जाता है । प्यार दिलो को जोड़ता है । रूह का जब रूह से कोई नाता जुड़े तब समझ लेना प्यार है । प्यार सिर्फ समर्पण मांगता है । जितना हो प्यार देते जाइये । 
प्यार कभी पूरा कोई लिख नही सकता फिर चाहे जितनी उपमा दीजिए हमेशा कम ही रहेंगी क्योंकि प्यार के अनेकों रूप है तो किस किस को किन शब्दो मे ढाल सकता है कोई । 
मैंने बहुत करीब से देखा है प्यार को । इतना के मैं प्यार को सुन पाई । मैंने जाना प्यार सिर्फ खुद को मिटा देने का नाम है । जो प्यार करता है वो कभी शिकायत नही करता । शिकायत का हक़ भी नही , प्यार कीजिये ईश्वर की बनाई हर एक कृति से , प्यार कीजिये उस परम ब्रह्म से । प्यार अपने जन्मदाता से , प्यार अपने हमसफ़र से , प्यार अपनी संतान से अपने अपनो से पर सबसे पहले प्यार कीजिये खुद से क्योंकि आप भी उसी ईश्वर की कृति है ।
प्यार है प्रेमी के आलिंगन में तो प्यार है बच्चे के पहले कृदन में , प्यार है पंछी की चहचहाट में , नदियों के कलरव में , प्रभु के सिमरण में , पशुओं में और पेड़ पौधों में भी बस प्यार ही है । हर जर्रा प्यार से महकता है । प्यार ना होता तो ना प्रेम कहानी होती और ना ये जिंदगानी होती ।

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