नींद की आगोश में जाने दे मुझे ख़्वाबों से नैन लड़ाने दे (preetsinghsr)
जरूरी था कि मिल जाएं,
धरा या फिर गगन पर हम
कि खिल जाएं उन्हीं रँग में
महक जाएं चमन पर हम..
जो आंसू, जल रहे थे
आंख रहकर, थम रहा
था वक्त
उन्हीं, उल्फ़त के लमहों से
निकलना हां जरूरी था..
कि बंध कर, स्थिरता
नामंजूर न जाने क्यों मुझे,
भले हो खाक मिट्टी पर यूँ ऐसे
बिखरना, जरूरी था
#preetsinghsr
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