जब तक जिंदगी मे कुछ अधूरा ना हो तब तक दिल से अल्फाज निकलते ही नहीं तो क्या में मुकम्मल हो गया हुं या मेरी तलाश खत्म हो गई तो में कहूंगा यकीनन नही तो क्यू आजकल ये लफ्ज़ मुझसे रूठ गए है। तो क्यू आजकल हर गजल बेस्वाद सी है क्यों आजकल मेरी आंखे रूखी सूखी सी है वो बहता सा दरिया आंसुओ का किस ओर निकल गया या कन्ही सच मे में बंजर सा हो गया हूं
ऐसा नहीं है शायद हां मगर ऐसा जरूर में थोड़ा हद से कुछ ज्यादा ही इमोसनल हो गया हूं ओर जो बेहद इमोसनल लोग पाए जाते है वो हर किसी की तकलीफ मे उदास हो जाते है बस कुछ दिमाग से शायर होते है जो उदासी को लफ्जो मे ढाल देते है हम जरा दिल से शायर है हमे मौत पड़ती हैं खाना खाते हुए भी नही देखा जाता किसी को रोते बिलखते हुए हमसे
में अलग लेवल का पागल इंसान हू मुझे टाइम लगता है निकलने में इन सब से में कट सा जाता हूं इस दुनिया से बस एक सवाल के जवाब ढूंढने मे आखिर खुदा इतना सख्त केसा हो सकता है। हर तरफ आग लगने जैसा माहौल है खेर ये आंधियां कब तक चिराग को रोकेगी कभी तो दिया सारी रात जलेगा
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